सिद्धि दे, सिद्धि दे, अष्ट नव निधि दे |
जगत में वुध्ही दे वाक्य वाणी हदय में दया ज्ञान दे, चित्त में ध्यान दे मोय को वरदान दे सम्भवराणी |
दु:ख को दूर कर, काल चक्र चूर कर, सुख भरपूर कर,राजराणी |
गुणन की रीत दे, सेन से प्रीत दे जगत में जीत दे, सदा जय भवानी |
१. जात सुद पा में अच्छे दुगडिये में ही जाती है या विवाह के तुरन्त बाद दी जाती जै | २. जात देने से पूर्व वर - वधु स्नान करके नये वस्त्र धारण करते है | मोड़ बांधते है, छेड़े बंधाते है| किसी भी प्रकार का काला वस्त्र या डोरा भी अंग पर होना वर्जित है| ३. श्री बडमाताजी की पूजा केसर, कुंमकुंम पुष्प धूप दीप अक्षत आदि से करे| दो श्रीफल, प्रसाद चढावे| ४. आसका ( हवन एव धूप की राख ) साथ ले जा सकते है| ५. जात के रुपये १०१/- ( ज्यादा से ज्यादा अपनी श्रध्दानुसार ) श्री बडमाताजी के भण्डार में डाले या मैनेसर के पास जमा कारकर रसीद प्राप्त करें| रसीद प्राप्त करना आवश्यक है|
प्रतिदिन कुलदेवी के आगे दीपक करके आरती करने का प्रयास करें |
नवरात्री में अखंड जोत व आरती करने का प्रयास करें |
प्रति वर्ष चैत्रसुदी ९ एवं आसोज सुदी १० को कुलदेवी दर्शन हेतु बड़माता ( मुंडवा ) दर्शन करने का प्रयास करें |
१. नये मकान या प्रतिष्टान में अगर श्री बड़वासन देवी के स्थान की स्थापना करनी हो तो यह सिर्फ असोज सुद एकम एवं चैत्र सुद एकम को ही अछे दुघडिये में ही होती है |
२. श्री बड़ामाताजी की फोटो के साथ दीवार पार माली पन्ना, कुंमकुंम या केसर का स्वस्तिक, त्रिशूल और चांद सूरज बनाना, तीन या पांच पत्ते की एक वट की डाली धोकर उस स्थान के कोने में रखना, लोटे में साबुत मुंग, चावल, सात साबुत बादाम और सवा रूपया रखकर उपर साबुत श्रीफल रखना, लाल वस्त्र से ढक कर मौली से बांधकर केसर, कुंमकुंम के पूजा करना |
३. दीप - धूप करके लापसी, प्रसाद,श्रीफल चढ़ाना |
४. माताजी की स्तुति करना |
५. फिर सदैव प्रात: और संध्या दीप - धूप करना |