सिद्धि दे, सिद्धि दे, अष्ट नव निधि दे |
जगत में वुध्ही दे वाक्य वाणी हदय में दया ज्ञान दे, चित्त में ध्यान दे मोय को वरदान दे सम्भवराणी |
दु:ख को दूर कर, काल चक्र चूर कर, सुख भरपूर कर,राजराणी |
गुणन की रीत दे, सेन से प्रीत दे जगत में जीत दे, सदा जय भवानी |
१. बालक जब एक या तीन वर्ष का हो जावे तब सुद पक्ष में मुंडन संस्कार मन्दिर में हो सकता है| दो वर्ष के बालक का मुंडन का संस्कार नहीं होता है| असोज के नवरात्री में मुंडन संस्कार आदि उत्तम है| २. सवपाव या सवा किलो गेहूं के बाट की लापसी गुड की बनवाई जाती है| जिसकी ९ हतियां बनाकर माताजी को चढावें| ३. बालक के ननिहाल से कोजलिया एवं नये टोपी आदि जो आव उन्हें बालक को मन्दिर में मुंडन करवा कर, स्नान करा कर पहनावे| बाल के मुडीत मस्तिष्क पर केसर या कुंमकुंम का स्वस्तिक बनावें | कोजलिए पर भी ५ स्वस्तिक बनावें और मोली डालकर बालक को वस्त्र ओपर पहनावें| माता, पिता व भुआ या बहिन आदि भी स्नान कर नये वस्त्र धारण कर पूजा की थाली में केसर,चन्दन, कुंमकुंम, मोली अक्षत, श्रीफल, लापसी प्रसाद आदि के साथ मन्दिर में प्रवेश करते समय प्रत्येक पागोतिये पर एक - एक श्रीफल चढाते चढाते मन्दिर में प्रवेश करें| ४. श्री बडमाताजी जी का पूजन कर प्रसाद, श्रीफल चढ़ाकर बालक को श्री बड माताजी के शरणागत करें| ५. एक - एक श्रीफल देवताओं को व भेरूज को भी चढावें | ६. चिटक व प्रसाद आपस में ही बाटें इसका ध्यान रखें| ७. मुंडन संस्कार के रु १०१/- ( ज्यादा से ज्यादा अपनी श्रध्दानुसार ) श्री बडमाताजी के भण्डार में डालें या मैनेजर के पास जमा कर रसीद प्राप्त करें| रसीद प्राप्त करना आवश्यक है| इससे रिकार्ड भी रहता है |
प्रतिदिन कुलदेवी के आगे दीपक करके आरती करने का प्रयास करें |
नवरात्री में अखंड जोत व आरती करने का प्रयास करें |
प्रति वर्ष चैत्रसुदी ९ एवं आसोज सुदी १० को कुलदेवी दर्शन हेतु बड़माता ( मुंडवा ) दर्शन करने का प्रयास करें |
१. नये मकान या प्रतिष्टान में अगर श्री बड़वासन देवी के स्थान की स्थापना करनी हो तो यह सिर्फ असोज सुद एकम एवं चैत्र सुद एकम को ही अछे दुघडिये में ही होती है |
२. श्री बड़ामाताजी की फोटो के साथ दीवार पार माली पन्ना, कुंमकुंम या केसर का स्वस्तिक, त्रिशूल और चांद सूरज बनाना, तीन या पांच पत्ते की एक वट की डाली धोकर उस स्थान के कोने में रखना, लोटे में साबुत मुंग, चावल, सात साबुत बादाम और सवा रूपया रखकर उपर साबुत श्रीफल रखना, लाल वस्त्र से ढक कर मौली से बांधकर केसर, कुंमकुंम के पूजा करना |
३. दीप - धूप करके लापसी, प्रसाद,श्रीफल चढ़ाना |
४. माताजी की स्तुति करना |
५. फिर सदैव प्रात: और संध्या दीप - धूप करना |