सिद्धि दे, सिद्धि दे, अष्ट नव निधि दे |
जगत में वुध्ही दे वाक्य वाणी हदय में दया ज्ञान दे, चित्त में ध्यान दे मोय को वरदान दे सम्भवराणी |
दु:ख को दूर कर, काल चक्र चूर कर, सुख भरपूर कर,राजराणी |
गुणन की रीत दे, सेन से प्रीत दे जगत में जीत दे, सदा जय भवानी |
रचयिता : भभूतमल लोढा, नागौर निवासी ( राग : जाओ जाओ ऐ प्यारी बटी, रहो पति के संग ) सेवो सेवो देवी किरपाली, नगर भढाणे वाली | सेवो सेवो देवी चमकाली, नगर भढाणे वाली || टेर || नगर भढाणे भूप लखनसी, खांप चौहान कहीजे | रविप्रभ सुरीश्वर सेती, जैन धर्म धरिजे || १ || विनय सहित गुरु वंदन करीने, दिलरो हाल सुणावे | पुत्र रतन मुझ चाह प्रबल है, दया करि बकसावें || २ || ऐम सुनी गुरु ध्यान कियो है, सिव्दीवचन सुन पावे | कुपा करि वरदान कियो गुरु, लाख़नसी हारषावे || ३ || सवा नौ माह पूरन थया तब, पुत्र बधाई आवे | राजा परजा हरष न मावे, घर-घर आनन्द छावे || ४ || कर असवारी आवे गुरु पे, विध-विध ठाठ सजावे | बजे नौबत घूरे निशाना, मंगल गीत गवान्वे || ५ || सम्वंत सात सौ एक साल में, गोतर नाम थपावे| लाखनसी के पुत्र रामसी, लोढा वंश कहलावे ||६|| श्री बड़वासन देवी से मंदिर, शहर भढाणे माई | (श्री बड़वासन देवी रो मंदिर, शहर भढाणे माई) लोंढा री कुलदेवी माता, गुरुदेव फरमाई ||७|| देश देश रा आवे यात्री, पूजा आन रचावे | (देश देश रा आवे यात्री चरणा शीश नवावे ) जात झडूलो करे दशोटन, बालक ने झुलावे ||८|| भान्त - भान्त री करे बोलवा, सब की आस पुरावे | (तरह तरह की करे बोलवा, सुब की आस पुरावे) समय समय पार सहायक होकर, चिंता दूर करावे ||९|| संकट काटन विघ्न निवारण, रिद्धी-सिद्धिकी दाता | (संकट काटन विघ्न निवारण, सुख संपत की दाता) जो जन सुमरन करत निरंतर, शुभ वांछित फल को पाता ||१०|| हाथ जोड़कर करू विनती, लोढा वंश दिपावो | महर करि संतन प्रति पालन, आनन्द हर्ष बधाओ ||११|| सम्वंत द्वादश दोय सहस है, जोधानो गुलजारी | लोढा भभूतमल दास तिहारो, दया चावे छे : थारी ||१२|| सेवो सेवो देवी किरपाली, नगर भढाणे वाली | सेवो सेवो देवी चमकाली, नगर भढाणे वाली ||१३||
प्रतिदिन कुलदेवी के आगे दीपक करके आरती करने का प्रयास करें |
नवरात्री में अखंड जोत व आरती करने का प्रयास करें |
प्रति वर्ष चैत्रसुदी ९ एवं आसोज सुदी १० को कुलदेवी दर्शन हेतु बड़माता ( मुंडवा ) दर्शन करने का प्रयास करें |
१. नये मकान या प्रतिष्टान में अगर श्री बड़वासन देवी के स्थान की स्थापना करनी हो तो यह सिर्फ असोज सुद एकम एवं चैत्र सुद एकम को ही अछे दुघडिये में ही होती है |
२. श्री बड़ामाताजी की फोटो के साथ दीवार पार माली पन्ना, कुंमकुंम या केसर का स्वस्तिक, त्रिशूल और चांद सूरज बनाना, तीन या पांच पत्ते की एक वट की डाली धोकर उस स्थान के कोने में रखना, लोटे में साबुत मुंग, चावल, सात साबुत बादाम और सवा रूपया रखकर उपर साबुत श्रीफल रखना, लाल वस्त्र से ढक कर मौली से बांधकर केसर, कुंमकुंम के पूजा करना |
३. दीप - धूप करके लापसी, प्रसाद,श्रीफल चढ़ाना |
४. माताजी की स्तुति करना |
५. फिर सदैव प्रात: और संध्या दीप - धूप करना |