सिद्धि दे, सिद्धि दे, अष्ट नव निधि दे |
जगत में वुध्ही दे वाक्य वाणी हदय में दया ज्ञान दे, चित्त में ध्यान दे मोय को वरदान दे सम्भवराणी |
दु:ख को दूर कर, काल चक्र चूर कर, सुख भरपूर कर,राजराणी |
गुणन की रीत दे, सेन से प्रीत दे जगत में जीत दे, सदा जय भवानी |
|| श्री बड़माताजी महाराज सही छै || श्री बड़माताजी जी महाराज रो सिलोको श्री सरस्वते माता लागूं जी पायो | सुध बुध दीजो किरपा कर मोयो ||१|| बे कर जोडी ने करूं अरदासो | निर्मल बुध्दि सूं आखर परकासो ||२|| श्री बड़वासन देवी रो केसुं सिलोको | एकण चित करने संभाल लोको ||३|| नगरे भढाणें मोटे मंडाणें | राजा लाखनसी खांपे चौहाने ||४|| श्री बड़वासन देवी रो बड़ नीचे थाने | राजा ने परजा सहु जन ही माने ||५|| राजा लाखनसी रे पुत्र नहीं कोई | जिणरी तो चिन्ता इदकी नित होई ||६|| बड़ा वेदक ने जोतेसी भारी | बहु द्रव्य खर्च्या लागी नहीं कारी ||७|| सम्वत बरसे सातो सै एके | श्री बड़माताजी राखे राजा रो टेके ||८|| पण्डित क्रामाती विद्या भरपूरे | वैसे भट्टारक रविप्रभ सुरे ||९|| एक दिन राजा गुरु पास आयो | हाथे जोड़ी ने शीश नवायो ||१०|| राजा लाखनसी ने प्रतिबोध दीनो | धर्म सुनाय श्रावक कीनो ||११|| राजा लाखनसी रे पुत्र री चाह | जिन कारण गुरूजी कीनो उपाय ||१२|| देवी रो परचो गुरा ने आयो | मंदिर माये सूं पारस उठायो ||१३|| देवी रे नाम सूं कनको मंडायो | राणी रे गले माद्ल्यो बंधायो ||१४|| उण दिन सूं राणी रे गर्भज आशा | राजा ने परजा हुआ हुलासा ||१५|| सवा नौ मासे शुभ विरियां माई | सुख सूं महारानी पुत्रज जाई ||१६|| राजा ने परजा हरखे नर - नारी | घर - घर गावे मंगलाचारी ||१७|| दशोटन करने गुरु पासे आवे | नाम गौत्र गुरूजी थपावे ||१८|| राजा ने प्रजा सबे नर - नारी | महाराजा किनी भारी असवारी ||१९|| बाजे नौबत ने घूरे निशानों | चढ़िया महाराजा मोटे मंडाणो ||२०|| गाजा ने बाजा ढोल - ढमाको | देवी रे पावे आवे सब सामों ||२१|| हाथी ने घोडा पलकिया पाला | कोतल सिणगारया चाले चिरताला ||२२|| गेणा ने कपड़ा सिरपाव भारी | कर - कर पोशाकां आया नर -नारी ||२३|| भक्तणियां नाचे, मंगल गावे | राजा रे मन में इदके उछावे ||२४|| मजलाजी मजला कलसे बंधावे | गुरु पासे मंदिर माताजी रे आवे ||२५|| कुंकुंम ने केसर चन्दन सूं चरचे | धुपे दीपे कर पुजापो अरचे ||२६|| नवे नेवद ने लापसी चढ़ावे | मासमो करने नामे दिरावे ||२७|| नामे रामसी लोढा रो गोतर | श्री बड़वासन पूजा होसी वधोतर ||२८|| मासमो, झडुलो, परन्यां री जाते | लोढा री कुलदेवी श्री बड़वासन माते||२९|| इण विध सूं पहलां मासमो करनो | पीछे बालक माता ने बारे पग धरनों ||३०|| इण विध लोढा में मर्यादा करसी | श्री बड़वासन पूज्या बड़ ज्यूं विस्तरसी ||३१ || इण विध लोढा में मर्यादा राखे | वधियो लोढा कुल बड़जी में साखे ||३२|| कुलदेवी कीनी लोढा पर किरपा | दिन - दिन बधिया इदके बधेपा ||३३|| इण विध माता परचो बहु दीना | सेवे जिका रा कारज सिध्द कीना ||३४|| देवी रो परचो नगरे में भारी | राजा ने परजा पूजे नर - नारी ||३५|| जिण कारण ध्यावे सो ही फल पावे | बोलवा बोली ने सरे नित सेवे ||३६|| आयडजी लोढा दिल्ली रे माही | क्रोड़ी धज हुआ, पुत्रज नाही ||३७|| दिल्ली रो बादशाह माने विशेके | त्रिनारी परन्या पुत्र नही एके ||३८|| दूजा तो देवता सर्वे मनाया | औखद बेखद ने द्रव्य लगाया ||३९|| आयड़ रे मन में चिंता हुई भारी | हु द्रव्य खरच्या लागी नहीं कारी || ४०|| अब तो बड़माता सूं कीनी स्तुते | नित सेवे पूजे मांगे एक पुते ||४१|| इण विध देवी री ध्यावना ध्याता | प्रसन्न हुई तुठी बड़माता ||४२|| सेवक रे मन रा कारज सिध्द कीना | एक पुत्र मांग्यो इग्यारह दीना ||४३|| सम्वत बारे सै बरसे बयाले | आयड़जी बोलवा पूरी तत्काले ||४४|| नगरे भढाणे आयड़जी आया | मासमों करने नामे दिराया ||४५|| आयड़ रा मन री पूरी जगीसे | सोना री मूरत सेरे पच्चीसे ||४६|| माता रे मंदिर मूरत पदराइ | पूजा रची ने शीश नवाई ||४७|| इण विध परचा किसडा बखाणु | सुणिया ने भाणिया अर्थ नहीं जाणू ||४८|| देशे परदेशे यात्री नित आवे | जाते, झडुलो, मासमो करावे ||४९|| ध्यावे जिकां रा कारज सिव्दकिना | परचा पूरी ने दर्शन दीना ||५०|| आगे तो परचा इसडा तूं देती | अब किण कारण बैठी नचिती ||५१|| पूजे ध्यावे पीण दर्शन नहीं पावे | म्हाने तो थारों परचो ही आवे ||५२|| चूक पड़े तो गुनो बकसीजे | सेवक उपर किरपा अब कीजे ||५३|| दिन - दिन माता इदके तुम ध्याई | अब तो किरपा कर तुठो मों माई ||५४|| के तो सेवक ने दर्शन दीजे के परचो पुरिया म्हाने परतीजे || ५५|| बालक रा में री माताजी जाणो | दोरा सोरा री सर्वे पिछानो ||५६|| म्हारा तो मन री थां सु नहीं छानी | माताजी कुपा कीजो कुल कानी ||५७|| जिण कारण ध्याउं सो ही फल पाउं | बोलवा बोली ने दर्शन ने आउं ||५८|| थारी तो बोलवा थांरे ही सारे | किरपा थे किनी लागे नहीं वारे ||५९|| तूं ही जैमाता, तूं जी जगदाता | तो ने तो समरया उपजे सुख - साता ||६०|| ह्दय -ह्दय में तू ही बसन्ती | बोले चाले ने हुवे सब शक्ती ||६१|| देश परदेश सेवक संभारी | दोरी विरिया में तूं ही रुखवारी ||६२|| दिन - दिन लोढा में बधेपो कीजे | ज्यूं थांरी महिमा इदंके बधीजे ||६३|| म्हारे केवन रो ओंइज मुद्दों | कुलदेवी कीजो कुल रो जी उद्दो ||६४|| सम्वत अठारे बरसे चौरासे | सुद पक्ष पंचेमी आसोज मासे ||६५|| मरुधर नगरे नागौर माई | लोढा दुलेमल सिलोको गाई || ६६|| भनें गुणें समझो धारे मन चिन्ते | कारज श्री बड़वासन सिध्द करतें ||६७|| || इति श्री ||
प्रतिदिन कुलदेवी के आगे दीपक करके आरती करने का प्रयास करें |
नवरात्री में अखंड जोत व आरती करने का प्रयास करें |
प्रति वर्ष चैत्रसुदी ९ एवं आसोज सुदी १० को कुलदेवी दर्शन हेतु बड़माता ( मुंडवा ) दर्शन करने का प्रयास करें |
१. नये मकान या प्रतिष्टान में अगर श्री बड़वासन देवी के स्थान की स्थापना करनी हो तो यह सिर्फ असोज सुद एकम एवं चैत्र सुद एकम को ही अछे दुघडिये में ही होती है |
२. श्री बड़ामाताजी की फोटो के साथ दीवार पार माली पन्ना, कुंमकुंम या केसर का स्वस्तिक, त्रिशूल और चांद सूरज बनाना, तीन या पांच पत्ते की एक वट की डाली धोकर उस स्थान के कोने में रखना, लोटे में साबुत मुंग, चावल, सात साबुत बादाम और सवा रूपया रखकर उपर साबुत श्रीफल रखना, लाल वस्त्र से ढक कर मौली से बांधकर केसर, कुंमकुंम के पूजा करना |
३. दीप - धूप करके लापसी, प्रसाद,श्रीफल चढ़ाना |
४. माताजी की स्तुति करना |
५. फिर सदैव प्रात: और संध्या दीप - धूप करना |